405 B | The horror Story | तात्याबा कॉम्प्लेक्स रूम नं ४०५-B | Part 2

जब पृथ्वी ने भी उसे कहा की वह मुझे भी देखती है । और तब विश्वास हुआ की क्रूशना और सनी ने भी कहा की वह औरत का कुछ ठीक नहीं लग रहा है । वह सबको देखती है ।

जब कृष्णा ने वह बच्चे वाली बात काही थी तो उसने वह बच्चे वाला रूम नं या उस आदमी रहने वाले रूम नं के बारे मे जिक्र नह किया था । शायद उसे पता न हो की कोनसा रूम था ।

पर वो औरत हमेशा कुछ अलग स नजरो से ही देखती थी । वह लड़को मे से कोई भी गॅलरी मे गया तो वह देखती थी और खिड़की बंद नहीं करती थी । जादा से जादा तर उसकी ९ साल की लड़की नहीं तो उस औरत की सांस वह खिड़की बंद कर देती थी ।

उन सब लड़को को लगता था की ये औरत बदचलन है तो वोह गॅलरी से उसका नाम लेने लग गए थे ।

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वह चरो लड़के जिस कमरे मे रह रहे थे वो कमरा चौथी मंजिल पे था । ऊपर आने के लिए दो तरफ सिडिया थी एक दाए और एक बाए । चौथी मंजिल के ऊपर एक पाँचवी मंजिल भी थी परंतु वहा सब मंजिलों के तुलना मे कम कमरे थे । ऊपर आने से पहले डरावनी गाड़ी पार्किंग से जाना पड़ता था । वह डरावनी तो नहीं थी लेकिन वह अचानक सा बदलाव महसूस होता था ,खास करके रात को । पार्किंग के पास ही  पीने के पानी की टंकी भी थी । पार्किंग पार  होने के बाद पहली मंजिल से तीसरी मंजिल पार करते चौथी मंजिल तक पहुंचना पड़ता था । लिफ्ट भी थी परंतु वोह कई सालों से बंद ही थी । बगल वाला कमरा नं ४०६ लॉक ही रहता था , शायद वह कोई नहीं रहता था और कमरा नं ४०४ जो की कॉम्प्लेक्स के कोने मे आने से ४०५ की सामने से मुड़ के ऊपर था जैसे कोणाकृति(ELBOW) मे । कमरा नं ४०४ मे चार लडकिया रहते थे , उन लड़को जैसे ही कॉलेज या कोपमोनी के लिए । कमरा नं ४०७ मे ३-४ आदमी रहते थे जो की यहा से बहुत दूर जॉब को थे । हर एक मंजिल पर तकरीबन ८-८ कमरे होगे । 

ऊपर आने के लिए जो दाए तरफ की सीडियाँ थी उधर से कमरा नं ४०५ तक गए तो हर एक मंजिल पर एक कमरा लगता था और फिर ४१० , ४०९ ,४०८ ,४०७ , ४०६ । बाए तरफ से ही वही गणित था । लेकिन बाए तरफ से ४१० , ४०९ ,४०८ ,४०७ , ४०६ से गुजरने की जरूरत नहीं थी । चौथी मंजिल पर बाए तरफ से पहला कमरा ४०५ ही था । परंतु ..... बाए तरफ से कमरा नं १०३ लगता था जो की दूसरी मंजिल पर था । उसी मंजिल पर वह प्लास्टिक का हाथी यानि की बच्चे की गाड़ी थी । वह १०३ के बाहर ही पड़ी रहती थी । कभी कभी गाड़ी पार्किंग से ऊपर जाने के सीडियों के पास भी दिखती थी । उन सब लड़को का आना जाना जादा तर बाए और से ही था । कृष्णा ने गाड़ी के बारे मे तो महि , सनी और पृथ्वी को बताया था परंतु खुद कृष्णा को भी मालूम नहीं था की यही वो गाड़ी है ।

       ऐसेही दिन गुजर रहे थे । रोज यह रात को लाते सोते थे और सवेरे लाते उठते थे । नीचे होटल नीलकमल जाते थे ,चाय नाश्ता करके दोपहर कमरे मे ही कुछ पकाके टाइम कटा लेते थे । महि , पृथ्वी और सनी की दोस्ती तो गाँव से ही ३ सालो से थी । वह साथ साथ टाइम बिताने के लिए कॉलेज को भी नहीं जाते थे । कभी कभी एक दिन मुह दिखाई करके आते थे आपने प्रोफेसर को । महि कभी भी कोमोनी से छुट्टी ले लेता था । ४ दिन गुजर गए कुछ भी नहीं हुआ था और कोई उस बारे मे बात भी नहीं करता था।

१२ फेब २०१५

रात हुवी थी और महि किचन मे खिचड़ी पका रहा था । पृथ्वी और सनी हॉल मेही मोबाइल पर whatsappचलते हौवे बैठे थे । कृष्ण महि को थोड़ी बहुत मदत  करके किचन से हॉल मे आ जाता था । कमरे मे खाना पकाने के लिए इंडक्शन था । जो की महि ने खिचड़ी पकाने के लिए २०० पर रखा था ।

थोड़ी देर महि भी हॉल मे आ गया था और सब के बाते शुरू हो गयी थी ।

१५-२० मिनट हौवे कुकर की पहली सिटी हुवी तो महि कुकर देखने गया ।

अरे मैंने तो २०० पर रखा था और अब २००० हो गया है , अभी मई बंद करके आया हु ! महि किचन से भागते दर के बोलते हौवे हॉल मे आया ।

कृष्णा उठा और इंडक्शन चेक करके आया और महि को संझाने लगा ।

अरे बिजली का प्रोब्लेम होगा और कुछ नहीं । कृष्णा समझाते हौवे बोला ।

पर महि अभी तक डर रहा था ।

उस रात किसिने कुछ ध्यान नहि दिया परंतु उस रात कोई बाथरूम भी जा न सका ।

जाने दो भाई मई तो विशास नहीं करता बोला पर सच बाते होगी तो उंगली क्यूँ करनी ! सनी बोला ।

 

यह इंडक्शन वाली बात होने से १ घंटा पहले –

           अरे वो कुकर तो धोके साफ करके दो रे ,खिचड़ी पकनी है क्या नहीं । माही बोला ।

पृथ्वी और सनी को कुछ पकाना आता नहीं था तो वह हॉल मे ही बैठे थे । कृष्णा और महि किचन मे से उन्हे गालिया दे रहे थे ,  काम करने के लिए ।

जाओ तुम कुछ काम नहीं कर रहे है तो नीचे से पीने का पानी तो भर के लाओ खिचड़ी पकाने के लिए ।

           सनी और पृत्व्हि फट से तयार हो गए , क्योंकि उन्हे आसान काम मिल गया था । उन्होने चार बड़ी बिसलेरी की खाली बोटले उठाई और नीचे चल दिये । जब वह दोनों गाड़ी पार्किंग के जगह पहुंचे तब उन्हे किशना ने बताई हुवी बाते याद आयी और वह और भी दर गए । बोटल भरने को जाने से पहले उन के मन मे यह न था । उन्होने कैसे तो चरो पानी की बोतले भरी और बाए सीडियों से आने लगे । तकरीबन १२:०२ हो चुके थे । नया दिन शुरू हो चुका था १३ जानेवारी । वो डरते डरते मन ही मन भगवान की प्रार्थना करके कमरे तक आ गए और कमरा नं ४०५ खटखटा ने लगे । महि और कृष्णा को बातो बातो मे दरवाजे का खटखटाना सुनाई न दिया । बाहर पृथ्वी औ र सनी खड़े थे , दरवाजे को खोलने की रह देखते । सीडियों से ठीक सामने ही कमरा नं ४०५ आता था । जब पृथ्वी औ र सनी खड़े थे तब उनके पीछे ऊपर आने वाली सीडियाँ ही थी । सनी की नजर पीछे सीडियों पर पड़ी तो पृथ्वी भी उस तरफ देखने लगा ।

           पानी की बोतलों मेसे बूंद बूंद पानी टपक रहा था परंतु सीडियो से नीचे बहुत जादा पानी जा रहा था । झरने के जैसे ही पानी सिडियो से नीचे जा रहा था । उन्होने डर से बोतलों को देखा तो बोतले तो पूरी पैक थी । एक बूंद भी पानी जाने के लिए जगहा नहीं थी । वो दोनों और भी दर गए और ज़ोर ज़ोरसे दरवाजा खटखटने लगे । महि को दरवाजे की खटखटहट सुनाई दी तो वो भी फौरन दरवाजा खोलने आगे बढ़ा । महि के दरवाजा खोलते ही वह सीडियों से बहता पानी बंद हो गया था परंतु बोतले के नीचे बूंद बूंद पानी गिर ही रहा था । अंदर आते ही सनी ने और पृथ्वी ने उनके साथ घड़ी घटना माही और कृष्ण को बताई । परंतु महि और कृष्णा जोरों से हसने लगे ।

अरे ये सब तुम्हारे मूवीस देखने का असर है , कृष्णा  हसते हौवे बोला ।

और तो और दोनों भी रायटर साथ मे है मतलब कहानी तो बनेगी ही , महि भी कृष्णा को साथ देकर बोला ।  

अरे यार लेकिन ऐसे कहानी मत बनाया करो रे , पहले ही यहा गंड फटी पड़ी है , कृष्णा दर के भाव से बोला ।

सनी को लग रहा था की ये इस बात पे विश्वास नहीं करेंगे तो वो भी उनके साथ म्मिलके हसने लगा और पृथ्वी को भी इशारा करके हसा दिया ।

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